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मिटटी में धुल

nishantjha
nishantjha
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हलचल मची क्यों सीने में
क्यों दिल मेरा परेशान हैं ,
बस एक टुकरा रोटी का
सबको मिले अरमान है .
– – + – –
जब किसी की लाश पर
तुमने हैं सकी रोटियाँ
क्यों किनारे कर चले
फिर उसकी बोटी -बोटियाँ .

मांग जिसकी चुप गयी
माथे का टिका खो गया ,
देखकर सिन्दूर उजड़ा
उसका बच्चा रो दिया .

बाप को उसके जो तुमने
मारा था आधी रात में ,
और सुबह आ गए
फरमान लेकर हाथ में .

देखलो नन्हा फ़रिश्ता
मिटने लगा मिटटी में फूल ,
कैसा सफ़र उसका हुआ
कैसे मिली मिटटी में धुल .

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