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मेरा परिवेश और मेरा देश

nishantjha
nishantjha
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चंद व्यक्ती आबाद हैं
कहतें देश आजाद है
तीन वर्ण कि भीगी आज़ादी
हर वर्ष रंगों में ढल जाती है
हमारा देश इतना पावन है
की देश- भक्ति एक सावन है
कब कहाँ बरस जाये
और यह रंग बह जायें
विद्यालयों में राष्ट्रगान गाते हैं
समोसे से जले हाथ को झंडे से सहलाते हैं..
हिन्दू- मुस्लिम विवाद धर्म से जुदा है
और धर्म में कभी कंही कपडे भी फट जाते हैं..
हर चुनाव के नतीजे में
है एक ग़रीब कहता
” यदि वो नेता होता
तो कुछ दुखी नहीं होने देता”
लेकिन किस को क्या खबर सत्ता उस चूने का नाम है
जो बिरे में पान के साथ चबा लिया जाता है
क्या कहें कि राजनीती एक मजबूरी का नाम है
एक तरफ सुरसा सा पेट
एक तरफ आवाम है
और वे सभी मुझ से सहमत हैं
की यह देश एक तहमत है
जब कभी भारी लगा पहनो
हल्का लगा उतार दो
सबके हाथ में देश का झंडा है
कि देश चलाना बनिए का धंधा है
अपराध काले तवे पर रोटी सफ़ेद सा सिकता है
देश का झंडा आठ आने में बाज़ार मैं बिकता है
देशभक्ति हमारी फितरत नहीं आदत है
आदत बुरी है, आदत शामत है.

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