Menu
blogid : 11502 postid : 1342315

ब्रह्म और ब्राह्मण :—

nishantjha
nishantjha
  • 15 Posts
  • 13 Comments

छान्दोग्य उपनिषद् में कहानी है कि द्विज (राजा) ने रैक्व नाम के शूद्र से ब्रह्मज्ञान प्राप्त किया था । शास्त्रों में ब्रह्म को जानने वाले को ही ब्राह्मण मानने का आदेश है, जन्म से सबको शूद्र कहा गया है । संस्कारों से ही कोई ब्राह्मण बनता है ।
आज के जातिवादी समाज में हर जाति में जातिवादियों की भरमार है, जिनका मुख्य निशाना वेद और ब्राह्मण रहते हैं । कलियुग के पथभ्रष्ट ब्राह्मणों से इनका वैर नहीं रहता, ऐसे लोगों का वैर असली ब्राह्मणों से रहता है जो प्राचीन धर्म पर चलने का प्रयास करते हैं । वेद और पुराणों को जो ब्राह्मणों से काटकर देखे, उसने कभी भी वेद और पुराणों का अध्ययन नहीं किया जिनमे ब्राह्मणों की प्रशंसा पर पन्ने पर मिलेगी । वेद में ब्राह्मण तो दिव्य पुरुष के सिर से बताया गया है यह जातिवादी गैर-ब्राह्मणों को हजम नहीं होता । लेकिन इन जातिवादियों को मालूम नहीं है कि वैदिक-पौराणिक ब्राह्मणों का लगभग लोप हो चुका है और यह लोप उन जातिवादी ब्राह्मणों ने किया है जिन्होनें वेदमार्ग का त्याग हज़ारों साल पहले कर दिया और जर-जमीन-जोडू के चक्कर में पथभ्रष्ट हो गए । मनुस्मृति में आदेश है कि ब्राह्मण को केवल छ कर्म ही करने की अनुमति है : वेद पढ़ना-पढ़ाना, दान लेना-देना, और यज्ञ करना-कराना, तथा यज्ञ- देवपूजन- ज्योतिष- चिकित्सा से जीविका अर्जित करने वाले ब्राह्मणों को आर्य समाज से बहिष्कृत करके चाण्डाल एवं पंक्तिदूषक घोषित करने का आदेश है । ब्राह्मण को भूमि रखने और कृषिकर्म का तथा नौकरी करने का अधिकार नहीं था, बिना फीस लिए बच्चों को भीख मांगकर पढ़ाओं और उपरोक्त छ कर्म करो । ऐसे वेदमार्गी ब्राह्मणों की प्रशंसा पुराणकारों ने ही नहीं बल्कि गौतम बुद्ध ने भी की (देखें धम्मपाद) और अशोक के शिलालेखों में भी ऐसे ब्राह्मणों को सर्वोच्च माना गया है , हालांकि जिन्होंने धम्मपाद नहीं पढ़ा या अशोक के शिलालेख नहीं पढ़े या वेद-पुराण नहीं पढ़े वे लोग म्लेच्छों द्वारा लिखित गलत इतिहास पढ़कर बकवास करते फिरते हैं ; ऐसे लोग आधुनिक कुशिक्षा के “शिकार” हैं ।
मानवतावादी-साम्यवादी उदात्त भावना से ओत-प्रोत ऐसे बुद्धिजीवियों की भरमार है जो वस्तुतः भ्रामक और धर्म-विरोधी विचारों का प्रचार करके सनातन धर्म की जड़ों पर कुठाराघात करते रहते हैं । आधुनिक कलियुगी ब्राह्मणों के दोषों को प्राचीन ब्राह्मणों पर कल्पित करने वाले लोग ऐसे भ्रामक विचार पाल लेते हैं । लेकिन कलियुग में केवल ब्राह्मण ही तो दोषयुक्त नहीं हैं । किन्तु सारा दोष ब्राह्मणों पर थोपने की अंग्रेजी नीति चली आ रही है ।
ऋग्वेद के दसवें मण्डल में दिव्य पुरुष के सिर से ब्राह्मण, भुजा से क्षत्रिय, उदार से वैश्य और पाँव से शूद्र कहा गया है, फिर इस बकवास का क्या आधार है कि वेद में ऊँच-नीच नहीं था ? ऊँच-नीच तो प्रकृति का सनातन नियम है, जिसने जैसे कर्म किये हैं वैसे ही फल भोगेगा। केवल फल में साम्यवाद क्यों, कर्म में साम्यवाद क्यों नहीं ? साम्यववाद-समाजवाद की आड़ में दरअसल झुण्डवृत्ति कार्य करती है : मेरा झुण्ड महान, मेरी जाति या नस्ल या क्षेत्र या राष्ट्र ऊँचा, मेरा कुआँ अच्छा , मेरे मेंढक अच्छे, क्यों मैं अच्छा , मैं मैं मैं ….. । केवल “मैं” ही पसन्द है तो अहंकार को मिटाकर असली “मैं” में स्थित हो जाओ जो सबके भीतर है, उस ब्रह्म में जो स्थित है वही तो ब्राह्मण है ।
यदि आत्मविरोधी भौतिकवादी साम्यवाद पसन्द है तो कम्युनिस्ट पार्टी में भर्ती हो जाओ, क्यों झूठ-मूठ वेदों को उद्धृत करते हो ! वेद की झूठी परिभाषा मैक्समूलर जैसे मलेच्छों की है जो शौच करना भी नहीं जानते । सारे मौलिक उपनिषद् वेदों के अङ्ग हैं, वेदों के सार नहीं । उदाहरणार्थ, ईशोपनिषद यजुर्वेद का अन्तिम अध्याय है जिस कारण ऐसे दर्शन को वेदान्त कहा जाता है । लेकिन वेदों का 90% से अधिक कर्मकाण्ड है, ज्ञानकाण्ड (उपनिषद्) 10% से भी कम है । ईशोपनिषद में भी कर्मकाण्ड की महत्ता का वर्णन है । कलियुग में धनलोलुप जाति-ब्राह्मणों ने कर्मकाण्ड को पेटपूजा का साधन बना दिया जिस कारण आधुनिक मूर्खों ने कर्मकाण्ड का ही विरोध करना शुरू कर दिया । हिन्दुओं के सारे संस्कार कर्मकाण्ड ही हैं, सारे वैदिक यज्ञ भी कर्मकाण्ड हैं । लेकिन आजकल के नकली हिन्दुओं द्वारा एक तरफ वेद का समर्थन किया जाता है, दूसरी तरफ वैदिक कर्मकाण्ड का विरोध किया जाता है और केवल वेदान्त की आड़ ली जाती है जो संन्यास का दर्शन है, लेकिन ऐसे लोग स्वयं संन्यास का मार्ग नहीं अपनाते , तो फिर ऐसे लोगों का वास्तविक धर्म क्या है ? वैदिक धर्म के नाम पर स्वेच्छाचारिता !! धर्म का आधार शास्त्र है । शास्त्र का आधार वेद हैं, लेकिन वेद में व्याख्याएं नहीं हैं, जनसामान्य के लिए वेदमार्ग को ही पुराणों में प्रस्तुत किया गया है और ऋग्वेद में भी आदेश है कि लोगों को “पुराणवत” आचरण करना चाहिए , यद्यपि कलियुग में अनेक पुराणों, स्मृतियों और महाकाव्यों में कतिपय प्रक्षिप्त अंश भी दुष्टों ने जोड़ दिए हैं ।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जाति-प्रथा को मिटाकर हिन्दू-जाति को जर्मनों की तरह एकजुट करना चाहता है । दयानन्द सरस्वती जी का भी यही उद्देश्य था । महात्मा गान्धी और (बिना भतीजा वाला) चाचा नेहरू जैसे अनेक महापुरुषों का यही उद्देश्य रहा है । संविधान का भी ऐसा ही लक्ष्य है ।
फिर क्या कारण है कि इन महापुरुषों ने जो संविधान थोपा उसमे आरक्षण नाम का भूत घुसा दिया जो मानव जाति के एक्सटिंक्शन तक जाति-प्रथा को हिन्दू-समाज से निकलने नहीं देगा ? महात्मा गान्धी के नेतृत्व काल में भी कांग्रेस की सभी छोटी बड़ी कमिटियों और अन्यान्य पदों का बँटवाड़ा 100% जातीय आधार पर किया जाता था । जातिवाद का विरोध का ढोंग करने वाले लालू और मुलायम जैसे तमाम महापुरुष घोर जातिवादी हैं । मण्डल आयोग ने 3600 पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षण की पैरवी की लेकिन यह नहीं कहा की उन 3600 पिछड़ी जातियों में भी आरक्षण का लाभ केवल उन्हीं को मिलेगा जो कम से कम आपस में अन्तर्जातीय विवाह कर लें । लालू जी को अपनी सन्तानों के लिए यादव दूल्हा-दुल्हिन ही चाहिए, ब्राह्मणों से पूजा-पाठ भी कराएंगे, जगनाथ मिश्र के बेटे को जितवाने के लिए नितीश कुमार से पैरवी करके झंझारपुर का सीट झटकेंगे, और जनता को मूर्ख बनाने के लिए अगड़ी जातियों को गरियायेंगे । “भूमिहार कम्युनिस्ट” रामशरण शर्मा जी इतिहास की पुस्तकों में ब्राह्मणों को वेदकाल से ही गोमांस-भक्षक बतलायेंगे, राठौड़ की उत्पत्ति देसी जंगली कबीलों से बताएँगे, लेकिन भूमिहार पर कोई टिप्पणी नहीं देंगे ! कोई “विद्वान” गान्धीवादी है, कोई समाजवादी, कोई अम्बेडकर का चेला, तो कोई कम्युनिस्ट हैं , लेकिन सब के सब कट्टर जातिवादी भी हैं ! अद्भुत देश है मेरा भारत महान ! यहां केवल ब्राह्मण बुरा है, वह भी नारायण दत्त तिवारी या जगन्नाथ मिश्र या नेहरू नहीं, बल्कि जप-तप करने वाले वेदमार्गी ब्राह्मण ही सारी कुरीतियों की जड़ हैं !
तो फिर इन दुष्ट ब्राह्मणों की कुरीतियों को ढो क्यों रहे हो ? सारी गैर-ब्राह्मण जातियाँ, जो आबादी की 97% हैं, यदि अन्तर्जाति विवाह करने लगे तो ब्राह्मणों की क्या औकात है जो जातिप्रथा को बचाकर रख पाएंगे ? लेकिन नहीं, सभी मेंढकों को अपना ही कुआँ पसन्द है । इन मूर्खों को यह भी नहीं मालूम है कि भारत की अधिकाँश दलित जातियों का निर्माण ईस्ट इंडिया कम्पनी ने किया : तमाम औद्योगिक जातियों/गिल्डों का रोजगार नष्ट किया, उन्हें खेतिहर मजदूर बनाया, और झूठा नस्लवादी-जातिवादी इतिहास पढ़ाया ।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की एक बैठक में प्रस्ताव आया था कि सभी हिन्दुओं को जातिप्रथा मिटाकर एक सशक्त “हिन्दू” जाति बन जाना चाहिए । एक पण्डित ने उत्तर दिया कि इसके दो रास्ते हैं : या तो सबको ब्राह्मण बना दिया जाय, या फिर सबको शूद्र बना दिया जाय , किन्तु सबको ब्राह्मण बनाना तो दुष्कर है, अतः एक सशक्त “हिन्दू” जाति बनाने का एकमात्र उपाय यही है कि सभी हिन्दुओं को शूद्र बना दिया जाय । वहां किसी ने उस पण्डित की बात का उत्तर नहीं दिया, बहस ही समाप्त हो गयी, लेकिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने उस पण्डित को बुलाना बन्द कर दिया ।
बहस बन्द करने से क्या समस्या समाप्त हो जाएगी ? हज़ारों जातियों-उपजातियों को मिटाकर एक हिन्दू जाति बनाने वालों को यह भी तो सोचना चाहिए कि वसुधैव कुटुम्बकम की डींग मारने वालों को एक हिन्दू जाति के स्थान पर एक मानव जाति की बात करनी चाहिए, जिसमे शान्ति कायम रखने का एकमात्र उपाय है समस्त धर्मग्रन्थों को जलाकर सबको मानवधर्म पढ़ाया जाय ! लेकिन याद रहे, जिसने ईश्वर का साक्षात्कार नहीं किया, उसे धर्म पर प्रवचन देने का अधिकार नहीं है । ईश्वर को तो यन्त्रों द्वारा नहीं देख सकते, लेकिन धर्म के ठेकेदारों की जांच तो लाई-डिटेक्टर यन्त्रों द्वारा सम्भव है ! यदि ऐसा सम्भव हो तो वास्तविक धर्म अपने आप स्थापित हो जाएगा । लेकिन कलियुग के ठेकेदार ऐसा होने नहीं देंगे !
धर्मशास्त्रों में कहीं भी सारस्वत, गौड़, कान्यकुब्ज, मैथिल, द्रविड़, नम्बूदिरी, आदि में ब्राह्मणों का बँटवाड़ा नहीं मिलेगा । ये सारी उपजातियां क्षेत्रों पर आधारित हैं । लेकिन जो भूमि से जुड़ गए वे तो भूमिहार हैं । कलियुग से पहले जो जुड़े उन्हें भूमिहार कहकर त्याग दिया, कलियुग में जो भूमि से जुड़े वे ब्राह्मण बने रहने का ढोंग पालते रहे !
यह सच है कि ब्राह्मण आदिपुरुष के शीर्ष से निकला, लेकिन कलियुग में सिर, हाथ, पाँव और उदर सारे पुर्जे गड़बड़ा गए हैं । हाथ, पाँव और उदर में गड़बड़ी हो तो खुद इलाज करा सकते हैं, लेकिन सिर में गरबड़ी हो तो मरीज स्वाकार भी नहीं करेगा कि वह रोगी है । उसे बलपूर्वक पागलखाने में भर्ती कराना पडेगा । लेकिन सिर ठीक रहे तो हाथ, पाँव और उदर का इलाज करा लेगा । लेकिन उस सिर को क्या कहा जाय जो अपने ही हाथ, पाँव और उदर को शत्रु बना ले ? ब्राह्मण ठीक हो जाय और एकताबद्ध हो जाय तो पूरी सृष्टि को दुरुस्त कर देगा, लेकिन किसकी मजाल है जो ब्राह्मण को सुधार दे ?

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply